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काली नज़र वाली पड़ोसन

◆काली नज़र वाली पड़ोसन◆

नोट:- इस कहानी के सभी पात्र और घटनाएं काल्पनिक हैं। इनका वास्तविकता से कोई संबंध नही है।

रोहित जैसे ही अपने घर से इंटरव्यू देने को जाने को बाहर निकला, चम्पा(रोहित की माँ)- "शिव! शिव! शिव! शिव! सत्यानाश हो।" सामने वाली पड़ोसन पुष्पा को देख कर ज़ोर-ज़ोर से बोल कर कोसने लगती है। पुष्पा अपने घर के बाहर सब्जी खरीद रही थी। "पता नही यह कब सबको अपनी काली नज़र लगाना छोड़ेगी।"-चम्पा ने खुद ही बड़बड़ाते हुए कहा। "बस करो माँ! तुम ये सब क्या बोल रही हो। आंटी को बुरा लगेगा।"-रोहित ने अपनी माँ को मना करते हुए बोला। "तू चुप कर! कुछ नही पता तुझे। चुपचाप अंदर चल। थोड़े देर रुक कर बाहर के लिए निकलना। इसने अपनी काली नज़र तो लगा ही दी है। बड़ी आई आंटी।"चम्पा (रोहित का हाथ खींच कर अंदर ले जाते हुए) कहती है। "अरे...लेकिन माँ मुझे इंटरव्यू के लिए देर हो जाएगी।"- रोहित अंदर जाते हुए अपनी माँ से कहता है। पर चम्पा उसकी एक ना सुनती है और उसे जबरदस्ती अंदर ले जाती है। सामने से पुष्पा सारी बातें चुपचाप सुन रही थी। वह बिना कुछ कहे चुपचाप सब्जी ले कर अंदर चली जाती है। बगल वाले घर से नेहा बड़ी हैरानी के साथ सब कुछ देख और सुन रही थी। उसे कुछ समझ नही आ रहा था कि आखिर यह सब चल क्या रहा है। नेहा भी अपने घर से बाहर सब्जी खरीदने को बाहर निकली थी।  
नेहा दो दिन पहले ही बगल वाले घर में किराए पर अपने पति सुमेश के साथ रहने आई थी। नेहा और सुमेश की शादी कुछ दिन पहले ही हुई थी। नए होने के कारण वह दोनों यहाँ पर किसी को पहचानते नही थें। सुमेश एक एम.एन. सी में कार्यरत था और नेहा ने भी फैशन डिजाइनिंग का कोर्स किया हुआ था।
शाम को जैसे ही सुमेश ऑफिस से वापस आता है, नेहा  उसे सारी बातें बताती है। "देखो नेहा! है तो यह गलत। पर हम अभी यहाँ नए-नए आए है। हमें किसी के बारे में कुछ नही पता। हो सकता है चम्पा आंटी और पुष्पा आंटी की आपस में ना बनती हो।"-सुमेश ने नेहा की बातों को सुन कर बोला। "हाँ सुमेश तुम ठीक कहते हो। मैं परसों पूजा में सभी को बुलाती हूँ। इसी बहाने सभी से जान पहचान भी हो जाएगी।"-नेहा ने सुमेश से कहा। सुमेश ने नेहा की बात मान ली। 
नेहा के घर पूजा में सभी पड़ोसी इकट्ठे होते हैं। पूजा समाप्त होने के बाद सभी एक दूसरे से बात-चीत में व्यस्त हो जाते हैं। सभी एक साथ बैठे हुए थें। पुष्पा एक कोने में अकेली बैठी थी। "अरे.. आंटी आप उधर अकेली क्यों बैठी हैं? आइये ना! आप भी हम सब के साथ इधर बैठिए।" नेहा, पुष्पा को बुलाते हुए कहती है। "नही नही बेटा मैं इधर ही ठीक हूँ।" -पुष्पा, नेहा को इनकार करते हुए कहती है। बातों बातों में नेहा चम्पा से पूछती है, -चम्पा आंटी आपके बेटे को नौकरी मिल गई क्या?" 
"अरे कहा.... नौकरी कहाँ से मिलनी थी। जब इंटरव्यू में जाते वक्त ही इसकी काली नज़र मेरे बेटे को लग गई।" -चम्पा ने पुष्पा की तरफ देखकर मुँह बिचकाते हुए बोला। "नही भाभी जी, वो.. भैया इंटरव्यू के लिए ही लेट गए थे। इसलिए नौकरी नही मिली।" -रोहित की छोटी बहन रिंकी ने अपनी माँ की बातों को काँटते हुए नेहा से कहा। रिंकी भी अपनी माँ के साथ नेहा के घर आई हुई थी। "तू चुप रहेगी! बड़ी होशियार हो गई है आजकल। जैसे तुझे सब पता है।" -चम्पा, रिंकी को डाँट कर चुप कराती है। नेहा पुष्पा से कुछ बात करती उससे पहले ही पुष्पा, नेहा से अपने घर जाने की इजाज़त लेती है। पुष्पा के चले जाने के बाद चम्पा, नेहा से कहती है, - देख बेटा! तेरी अभी नई-नई शादी हुई है। इस मनहूस की काली नज़र अपनी गृहस्थी पर ना पड़ने दे तो अच्छा होगा। ठीक है बहुत देर हो गई अब मैं चलती हूँ। मैंने जो बोला वो ध्यान रखना और किसी चीज़ की जरूरत हो तो कहना।" -चम्पा फुसफुसाते हुए नेहा से बोलती है और अपने घर को निकल जाती है। नेहा अभी भी कुछ समझ नही पा रही थी कि आखिर चम्पा बार-बार ऐसा क्यों कहती है। 
दूसरे दिन नेहा चम्पा के घर आती है। "आंटी जी! क्या मैं रिंकी को अपने साथ मार्केट ले जा सकती हूँ? दरसल मैंने यहाँ का बाज़ार नही देखा है ना। रिंकी साथ रहेगी तो आसानी हो जाएगी।" -नेहा, चम्पा से रिंकी को अपने साथ ले जाने की इजाज़त मांगती है। चम्पा, -"हाँ हाँ क्यों नही। ले जा! ये भी कोई पूछने वाली बात है। नेहा और रिंकी बाज़ार के लिए निकल जाते हैं।
"अच्छा रिंकी! एक बात पूछूँ?" -नेहा, रिंकी से रास्ते में पूछती है। "हाँ हाँ भाभी जी पूछिए ना।"- रिंकी मुस्कुराते हुए नेहा की बातों का जवाब देती है। "मुझे पुष्पा आंटी के बारे में जानना है।" -नेहा बात आगे बढ़ाते हुए कहती है। रिंकी समझ चुकी थी कि नेहा क्या जानना चाहती है। 
"दरअसल भाभी जी बात ऐसी है कि मुझे तो कुछ ठीक से नही पता क्योंकि मैं उस वक़्त बहुत छोटी थी। पर जैसा सब कहते हैं मैं वो आपको बताती हूँ। 20 सालों पहले जब पुष्पा आंटी और रमेश अंकल की शादी हुई थी उस वक़्त दोनों सामने वाले घर में ही रहते थें। साथ में रमेश अंकल के पिताजी भी रहते थें। उनकी शादी को केवल 4 दिन ही हुए थें। रमेश अंकल और उनके पिताजी अपने दुकान जाने के लिए निकले थें। बाहर दरवाज़े में आ कर पुष्पा आंटी ने मुस्कुराते हुए उन्हें दुकान के लिए विदा किया था। पर रास्ते में उनका ट्रक से बहुत भयंकर एक्सीडेंट हो गया। जिसमें रमेश अंकल के पिताजी की मृत्यु हो गई और रमेश अंकल अपाहिज हो गए। तब से ले कर अभी तक रमेश अंकल व्हील चेयर पर हैं। पुष्पा आंटी किसी तरह सिलाई बुनाई से अपना घर खर्च चलाती है। रमेश अंकल और पुष्पा आंटी की कोई संतान नही है। बस तब से ही पुष्पा आंटी को सभी काली नज़र वाली बोलते हैं।" -रिंकी ने बड़ी मायूसी के साथ नेहा को सब कुछ बताया। नेहा(हैरानी के साथ) -"अब समझी।" रिंकी आगे कहती है, -"पर सच बताऊ भाभी जी!मुझे सबका पुष्पा आंटी से व्यवहार बिल्कुल भी अच्छा नही लगता। और उस दिन तो माँ के वजह से रोहित भैया इंटरव्यू में  लेट हो गए थें।" नेहा, -"हम्म रिंकी! मैं समझती हूँ।"
कुछ दिन बाद नेहा किसी कंपनी में जॉब इंटरव्यू के लिए जाने को घर से बाहर निकलती है। वह पुष्पा के घर का दरवाज़ा खटखटाती है। पुष्पा अपने घर से जैसे ही बाहर आती है, नेहा पुष्पा के पैर छूते हुए कहती है- "आंटी जी मुझे आशीर्वाद दीजिए। मेरा आज इंटरव्यू है।" पुष्पा नेहा को आशीर्वाद तो दे देती है पर शायद उसे ऐसे व्यवहार की उम्मीद ना थी क्योंकि आजतक सभी पुष्पा से दूर ही रहते थें। सामने चम्पा और रिंकी भी बाहर खड़े थें। चम्पा आँखे फाड़ फाड़ कर नेहा को देख रही थी। नेहा जैसे ही चम्पा का आशीर्वाद लेने चम्पा के पास आई, चम्पा मुँह ऐंठ कर बिना नेहा को आशीर्वाद दिए, "बड़ी आई फैशन डिज़ाइनर। मना किया था मैंने कि उससे दूर रहना। अरे नौकरी मिलेगी तब ना।" बुदबुदाती हुई अंदर चली जाती है। नेहा रिंकी को बाई कहती है और आगे निकल जाती है।
(शाम को) चम्पा की दरवाज़े के खटखटाने की आवाज़ आती है। चम्पा जैसे ही दरवाज़ा खोलती है। नेहा सामने मिठाई ले कर खड़ी थी। "आंटी जी मुँह मीठा कीजिए। मुझे नौकरी मिल गई।" -नेहा मिठाई का डब्बा चम्पा की तरफ़ बढ़ाते हुए कहती है। "अरे वाह भाभी जी! आपको जॉब मिल गई।" -रिंकी यह कहते हुए दौड़ कर नेहा के पास आती है। "हाँ रिंकी"-नेहा ने कहा। चम्पा चुपचाप खड़ी थी। "देखा आंटी जी! कोई बुरी नज़र वाला या काली नज़र वाला नही होता। सुबह मैं पुष्पा आंटी का आशीर्वाद ले कर घर से बाहर निकली थी। फिर भी मुझे नौकरी मिल गई।" -नेहा ने चम्पा की ओर देखते हुए कहा। चम्पा गुस्से से तिलमिला उठती है और नेहा से ऊँचे आवाज़ में कहती है- "तू मुझे ताना मारेगी?" 
"नही आंटी जी! आप मुझसे बहुत बड़ी है। मैं आपको ताना कैसे मार सकती हूँ। पर जिस तरह छोटे गलती करते हैं और बड़े उन्हें सही रास्ते पर लाते हैं। वैसे ही हम छोटों का भी फर्ज़ है कि अगर बड़े कुछ गलती करें तो उनको सही रास्ता दिखाए। 20 सालों पहले जो पुष्पा आंटी के साथ हुआ वह नियति थी और उनकी किस्मत थी। पर हम उनके साथ बुरा व्यवहार कर के ईश्वर के नज़रों में बुरे क्यों बनें? ईश्वर ने सभी मनुष्य को दो आँखे, दो कान , दो हाथ, दो पैर दे कर बराबर बनाया। फिर किसी की नज़र अच्छी या बुरी कैसे हो सकती है? इस कठिन परिस्थिति में तो हम सब को पुष्पा आंटी का साथ देना चाहिए।" -नेहा ने चम्पा को समझाते हुए कहा। चम्पा सिर झुकाए नेहा की सारी बातें सुनती है और बिना कुछ कहे भीतर चली जाती है। 
नेहा और रिंकी खुश हो कर एक दूसरे को देखने लगते हैं। नेहा के ऑफिस जाते वक्त चम्पा को बाहर लाने का प्लान नेहा और रिंकी ने बाज़ार में बनाया था। 
©स्वाति चरण पहाड़ी

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15 Comments

madhura

01-Feb-2023 02:41 PM

nice story

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shweta soni

18-Jul-2022 12:01 AM

Bahot badiya

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HENA NOOR AAIN

23-May-2022 03:31 PM

Nice

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